Saturday, 9 May 2020

खण्डेलवाल ब्राह्मण की कुलदेवी

जैसा कि आपको विदित है हमारे खाण्डल समाज के उद्गम स्थल लोहार्गल में आप सभी समाज बन्धुओं के सहयोग से एक विशाल भव्य भवन का निर्माण कराया जा रहा है , जिसमें हमारे समाज के पूर्वज ऋषियों की प्रतिमाएँ एवं कुल देवियों के मंदिर स्थापित किये जायेंगे । हमें समाज बन्धुओं से हमारे समाज की निम्नलिखित कुल देवियों होने की जानकारी मिली है । इनके अतिरिक्त अन्य कोई हो तो कृपया प्रमाण सहित जानकारी से अवगत करावे ताकि तदानुसार आवश्यक संशोधन किया जा सके । कुल देवियों एवं गौत्रों के नाम निम्न प्रकार है !




1 . झाड़ली माता ( नाथकी माता )                    पीपलवा , गोधला . मछवाल
2 . शाकम्भरी माता                                        भूरटिया , भाटीवाड़ा , मंगलहारा , सोती लढाणिया , झुन्झुनोदिया
3 . अन्नपूर्णा माता                                          बील , निढाणिया , कुंजावड़ा , मण्डगिरा
4. सुभद्रा माता                                              सिंहोटा , गुंजावड़ा , तिवाड़ी , सोमला
5 . महरमाता                                                चामुण्डा माता नवहाल , डीडवाणिया , गोरसिया , जोशी , परवाल
6 . समराय माता                                           सुन्दरिया
7. भुआल माता ( मनसा माता )                      काछवाल
8. जमवाय माता ( अम्बा माता )                     रिणवा , गोवला . बोचीवाल
9.  जीण माता                                              बढाढरा , चोटिया , पाराशर
10 . चन्द्रिका माता ( विशाला माता )              बणसिया , बाटोलिया
11 . नौयणी माता / पहाड़ी माता                    भुरभुरा , रूथला
12 . महागौरी माता                                      बंसीवाल , हुचरिया
13 . बंधुमाता                                              झकनाडिया , अजमेरिया
14 . शेमप्रभा माता / विघ्नेश्वरी माता               सेवदा , सांभरा , सोडवा , बीलवाल . दुगोलिया
15 . साडला माता / दुर्गा माता                      माटोलिया , शाकुनिया

खण्डेलवाल ब्राह्मण

जगद् का गौरवशाली स्थान प्राप्त करनेवाली भारतीय ब्राह्मण जातियों में
खाण्डलविप्र खण्डेलवाल ब्राह्मण जाति का भी प्रमुख स्थान है । जिस प्रकार
अन्य ब्राह्मण जातियों का महत्व विशॆष रूप से इतिहास प्रसिद्ध है, उसी
प्रकार खाण्डलविप्र खण्डेलवाल ब्राह्मण जाति का महत्व भी इतिहास प्रसिद्ध
है । इस जाति में भी अनेक ऋषि मुनि, विद्वान् संत, महन्त, धार्मिक, धनवान,
कलाकार, राजनीतिज्ञ और समृद्धिशाली महापुरूषों ने जन्म लिया है ।
खाण्डलविप्र जाति में उत्पन्न अनेक महापुरूषों ने समय समय पर देश, जाति,
धर्म, समाज और राष्ट के राजनैतिक क्षेत्रो को अपने प्रभाव से प्रभावित किया
है । जिस प्रकार अन्य ब्राह्मण जातियों का अतीत गौरवशाली है, उसी प्रकार
इस जाति का अतीत भी गौरवशाली होने के साथ साथ परम प्रेरणाप्रद है ।
जिन जातियों का अतीत प्रेरणाप्रद गौरवशाली और वर्तमान कर्मनिष्ठ होते है वे
ही जातियां अपने भविष्य को समुज्ज्वल बना सकती है । खाण्डलविप्र जाति में
उपर्युक्त दोनो ही बाते विद्यमान हैं । उसका अतीत गौरवशाली है । वर्तमान को
देखते हुए भविष्य भी नितान्त समुज्ज्वल है । ऐसी अवस्था में उसके इतिहास
और विशॆषकर प्रारंभिक इतिहास पर कुछ प्रकाश डालना अनुचित न होगा ।
खाण्डलविप्र जाति की उत्पत्ति विषयक गाथाओं में ऐतिहासिक तथ्य सम्पुर्ण रूप
से विद्यमान है । इस जाति के उत्पत्तिक्रम में जनश्रुति और किंवदन्तियों
की भरमार नहीं है । उत्पत्ति के बाद ऐतिहासिक पहलूओं के विषय में जहाँ
जनश्रुति और किंवदन्तियों को आधार माना गया है, वह दूसरी बात है । उत्पत्ति
का उल्लेख कल्पना के आधार पर नहीं हो सकता । याज्ञवल्क्य की कथा को प्रमुख
मानकर खाण्डलविप्र जाति का उत्पत्तिक्रम उस पर आधारित नहीं किया जा सकता ।
महर्षि याज्ञवल्क्य का जन्म खाण्डलविप्र जाति में हुआ था । याज्ञवल्क्य का
उींव खाण्डलविप्र जाति के निर्माण के बाद हुआ था । याज्ञवल्क्य
खाण्डलविप्र जाति के प्रवर्तक मधुछन्दादि ऋषियों में प्रमुख देवरात ऋषि के
पुत्र थे ।

खाण्डलविप्र जाति का नामकरण एक धटना विशोष के आधार पर हुआ था । वह विशॆष
धटना लोहार्गल में सम्पन्न परशुराम के यज्ञ की थी, जिसमें खाण्डलविप्र जाति
के प्रवर्तक मधुछन्दादि ऋषियों ने यज्ञ की सुवर्णमयी वेदी के खण्ड दक्षिणा
रूप में ग्रहण किये थे । उन खण्डों के ग्रहण के कारण ही, खण्डं लाति
गृहातीति खाण्डल: इस व्युत्पति के अनुसार उन ऋषियों का नाम खण्डल अथवा
खाण्डल पडा था । ब्राह्मण वंशज वे ऋषि खाण्डलविप्र जाति के प्रवर्तक हुए ।

Thursday, 23 January 2020

भगवान परशुराम

परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) के एक ब्राह्मण थे। उन्हें विष्णु का छठा अवतार भी कहा जाता है[1]। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत मैं हुआ था। (म.प्र) के इंदौर जिला मै हुआ था। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।


वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त "शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र" भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-"ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।" वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है।

sources from wikipedia