Saturday 28 May 2011

KHANDELWAL BRAHMIN SAMAJ



जगद् का गौरवशाली स्थान प्राप्त करनेवाली भारतीय ब्राह्मण जातियों में खाण्डलविप्र खण्डेलवाल ब्राह्मण जाति का भी प्रमुख स्थान है । जिस प्रकार अन्य ब्राह्मण जातियों का महत्व विशॆष रूप से इतिहास प्रसिद्ध है, उसी प्रकार खाण्डलविप्र खण्डेलवाल ब्राह्मण जाति का महत्व भी इतिहास प्रसिद्ध है । इस जाति में भी अनेक ऋषि मुनि, विद्वान् संत, महन्त, धार्मिक, धनवान, कलाकार, राजनीतिज्ञ और समृद्धिशाली महापुरूषों ने जन्म लिया है ।
खाण्डलविप्र जाति में उत्पन्न अनेक महापुरूषों ने समय समय पर देश, जाति, धर्म, समाज और राष्ट के राजनैतिक क्षेत्रो को अपने प्रभाव से प्रभावित किया है । जिस प्रकार अन्य ब्राह्मण जातियों का अतीत गौरवशाली है, उसी प्रकार इस जाति का अतीत भी गौरवशाली होने के साथ साथ परम प्रेरणाप्रद है ।
जिन जातियों का अतीत प्रेरणाप्रद गौरवशाली और वर्तमान कर्मनिष्ठ होते है वे ही जातियां अपने भविष्य को समुज्ज्वल बना सकती है । खाण्डलविप्र जाति में उपर्युक्त दोनो ही बाते विद्यमान हैं । उसका अतीत गौरवशाली है । वर्तमान को देखते हुए भविष्य भी नितान्त समुज्ज्वल है । ऐसी अवस्था में उसके इतिहास और विशॆषकर प्रारंभिक इतिहास पर कुछ प्रकाश डालना अनुचित न होगा ।
खाण्डलविप्र जाति की उत्पत्ति विषयक गाथाओं में ऐतिहासिक तथ्य सम्पुर्ण रूप से विद्यमान है । इस जाति के उत्पत्तिक्रम में जनश्रुति और किंवदन्तियों की भरमार नहीं है । उत्पत्ति के बाद ऐतिहासिक पहलूओं के विषय में जहाँ जनश्रुति और किंवदन्तियों को आधार माना गया है, वह दूसरी बात है । उत्पत्ति का उल्लेख कल्पना के आधार पर नहीं हो सकता । याज्ञवल्क्य की कथा को प्रमुख मानकर खाण्डलविप्र जाति का उत्पत्तिक्रम उस पर आधारित नहीं किया जा सकता । महर्षि याज्ञवल्क्य का जन्म खाण्डलविप्र जाति में हुआ था । याज्ञवल्क्य का उींव खाण्डलविप्र जाति के निर्माण के बाद हुआ था । याज्ञवल्क्य खाण्डलविप्र जाति के प्रवर्तक मधुछन्दादि ऋषियों में प्रमुख देवरात ऋषि के पुत्र थे ।
खाण्डलविप्र जाति का नामकरण एक धटना विशोष के आधार पर हुआ था । वह विशॆष धटना लोहार्गल में सम्पन्न परशुराम के यज्ञ की थी, जिसमें खाण्डलविप्र जाति के प्रवर्तक मधुछन्दादि ऋषियों ने यज्ञ की सुवर्णमयी वेदी के खण्ड दक्षिणा रूप में ग्रहण किये थे । उन खण्डों के ग्रहण के कारण ही, 'खण्डं लाति गृहातीति खाण्डल:' इस व्युत्पति के अनुसार उन ऋषियों का नाम 'खण्डल अथवा खाण्डल पडा था । ब्राह्मण वंशज वे ऋषि खाण्डलविप्र जाति के प्रवर्तक हुए ।
खाण्डलविप्रोत्पत्ति - प्रकरण
खाण्डलविप्र जाति की उत्पत्ति के विषय में स्कन्दपुराणोक्त रेखाखण्ड की 36 से 40 की छै: अघ्यायो में जो कथाभाग है उसका सार निम्नलिखित है:-
'एक बार महर्षि विश्वामित्र वसिष्ठ के आश्रम में गये । वहां जाकर उन्होंने वसिष्ठ से उनका कुशल प्रश्न पूछा । इस पर वसिष्ठ ने वि6वामित्र को राजर्षि शब्द से सम्बोधित करते हुए कहा कि :-
'आपके प्रश्न से मेरा सर्वत्र मंगल है ।'
विश्वामित्र यह सुनकर चुपचाप अपने आश्रम में चले आये । वे ब्रह्मर्षि पद प्राप्त करने के लिये कठोर तपस्या करने लगे । दीर्धकाल तक तपक रने के बाद विश्वामित्र फिर वसिष्ठ के आश्रम में गये । उन्होने वसिष्ठ से फिर कुशल प्रशन पूछा । जिसके उत्तर में फिर भी वसिष्ठ ने उनके लिये राजर्षि शब्द का ही प्रयोग किया और अपने ब्रह्मर्षित्व पर गर्व का प्रर्दशन किया ।
इस पर विश्वामित्र ने कहा - ' ब्रह्मन हमने तो पूर्वजों से सुना है कि पहले सभी वर्ण शूद्र थे । संस्कार विशॆष के कारण उनको द्विज संज्ञा प्राप्त हुई । ऐसी स्थिति में ब्राह्मण और क्षत्रिय में क्या भेद है आपको ब्राह्मण होने का यह अभिमान क्यों है
ब्राह्मण मुख से और क्षत्रिय भुजा से उत्पन्न हुआ इसलिये इन दोनों में भारी भेद है । वसिष्ठ का उत्तर था ।
यह गर्वोक्ति सुन विश्वामित्र उठकर चुपचाप अपने आश्रम में चले गये । उन्होने अपने अपमान का समस्त वृतान्त अपने पुत्रों से कहा । वे स्वयं ब्रह्मर्षि पद प्राप्त करने के लिये महेन्द्रगिरि पर्वत पर तपस्या करने के लिये चले गये ।
महर्षि विश्वामित्र के सौ पुत्र थे । पिता के तपस्या करने के लिये चले जाने के बाद उन्होंने अपने पिता के अपमान का बदला लेने की भावना से वसिष्ठ के आश्रम पर आक्रमण कर दिया ।
वसिष्ठ ने कामधेनु की पुत्री नन्दिनी द्वारा तालजंधादि राक्षसों को उत्पन्न कर उनसे विश्वामित्र के समस्त पुत्रों को मरवा डाला । विश्वामित्र के पुत्रों को मरवाने के बाद वसिष्ठ फिर अपने योग ध्यान में दन्तचित्त हुए ।
विश्वामित्र को जब अपने पुत्रों की मृत्यु का समाचार मिला तो वे अत्यन्त शोक के कारण मूर्छित हो गये । आश्रमवासी अन्य ऋषियों द्वारा उपचार होने पर जब विश्वामित्र की मूर्छा भंग हुई तो उन्हें अपने पुत्रों का दु:ख पुन: सन्तप्त करने लगा । उन्होने वसिष्ठ से बदला लेने की ठान कर पुन: कठोर तपश्चर्या प्रारम्भ की ।
जब उनकी तपश्चर्या को बहुत अधिक समय हो गया तो ब्राह्माजी ने प्रकट होकर वर मांगने को कहा । विश्वामित्र ने मृत पुत्रों के पुनरूदभव की याचना की ।
ब्राह्माजी तथास्तु कहकर चले गये ।
ब्राह्माजी के चले जाने के बाद विश्वामित्र ने वार्क्षिकी सृष्टि की रचना प्रारंभ की । इससे देवता लोग धबरा उठे । देवताओं ने ब्राह्माजी से प्रार्थना की कि - महाराज यह नियति का विधान परर्िवत्तित हो रहा है । आप इस अनर्थ को रोकिये ।
ब्राह्माजी पुन: विश्वामित्र के आश्रम में गये । उन्होने ऋषि विश्वामित्र को समझाया कि - आप जैसे बहुत ऋषि हो गये है, किन्तु किसी ने भी विधि का विधान परिवर्तित करने का दु:साहस नही किया । आप यह क्या कर रहे है यह तो अनर्थ मूलक है ।
विश्वामित्र ने उत्तर में कहा - वसिष्ठ ने तालजंधादि राक्षसों की उत्पत्ति कर मेरे पुत्रों को मरवा डाला है । इसलिये मैं भी वार्क्षिकी सृष्ठि द्वारा वसिष्ठ से बदला लूंगा ।
ब्राह्माजी ने फिर समझाया - स्थावर से स्थावर और जंगम से जंगम की उत्पत्ति होती है अत: आप इस कार्य के विरत होकर स्वस्थ होइये । आपका पुत्र शोक की शान्ति का उपाय करना आवश्यक है । आप मेरे कथनानुसार इसी समय महर्षि भरद्वाज के आश्रम में चले जाइये । वे आपका पुत्र शोक दूर कर आपको सब प्रकार से सान्तवना देंगे ।
विश्वामित्र ब्राह्माजी के कथनानुसार वार्क्षिकी सृष्ठि से विरत होकर महर्षि भरद्वाज के आश्रम में गये । महर्षि भरद्वाज ने नाना उपदेशो द्वारा उनका शोक दूर करते हुए कहा कि - गये हुओ के लिये आप चिंता न कीजिये । मैं मानता हूँ कि आपका पुत्र शोक दु:सह है । इसके लिये मैं उचित समझाता हूॅ कि आप मेरे इन सौ मानस पुत्रों को अपने साथ ले जाइये । ये आपका पिता के समान आदर करेंगे और सर्वदा आपकी आज्ञा में रहेंगे ।
विश्वामित्र ने महर्षि भरद्वाज का कहना मान लिया । वे उन सौ मानस पुत्रो को अपने साथ ले आये । उन्होने उन ऋषिकुमारों को नाना कथा कहानियों द्वारा अपनी ओर आकृष्ठ कर लिया । जब वे बडे हुए तो विश्वामित्र के आश्रम के निकटर्वी ऋषियों ने अपनी लडकियां उन ऋषिकुमारों को ब्याह दीं ।
विश्वामित्र ऋषि धूमते हुए हरि6चन्द्र के यज्ञ में जा पहुचे । हरि6चन्द्र अपने जलोदर रोग की शान्ति के लिये वारूणेष्टि यज्ञ कर रहे थे । उन्होने यज्ञ के लिये अजीगर्त नामक निर्धन ब्राह्मण के पुत्र शुन:शॆप को बलि पशु के स्थान पर खरीद लिया था । अजीगर्त महानिर्धन था । निर्धनता के कारण वह अपनी बहुसन्तति का भरण पोषण करने में भी असमर्थ था । उसने अपने पुत्र शुन:शॆप को रूपये के लोभ में बेच डाला था ।
शुन:शॆप अपनी मृत्यु निकट देखकर धबरा रहा था । वह विश्वामित्र की बहिन का पुत्र था । शुन: शॆप ने विश्वामित्र को देखते ही उनसे अपने छुटकारे की प्रार्थना की । विश्वामित्र ने शुन:शॆप को वेद की ऋचायें बतलाई, जिनके प्रभाव से बलिदान हुआ शुन:शॆप बच गया ।
यज्ञ समाप्ति के बाद जब सब लोग चले गये तो विश्वामित्र ने शुन:शॆप को आकाश से उतार कर हरिश्चन्द्र के सभासदों को दिखलाया । सभी लोग आश्चर्यचकित रह गये । इसके बाद विश्वामित्र शुन:शॆप को अपने साथ ले आये ।
धर आकर उन्होने अपने पुत्रो से समस्त वृतान्त कहा और उन्हें आदेश दिया कि - शनु: शॆप तुम्हारा भाई है । तुम इसे अपने बडे भाई के समान समझो, और इसका आदर करो । यह भी मेरा पुत्रक होगा । तुम्हारे समान यह भी मेरे धन में दायभाग का अधिकारी होगा । इस पर विश्वामित्र के वे सौ मानस पुत्र दो पंक्तियों में विभक्त हो गये । बडे पचास एक ओर थे । छोटे पचास दूसरी पंक्ति में थे । पहली पंक्ति वालों से जब ऋषि ने यह प्रश्न किया तो उन्होने शुन: शॆप को अपना बडा भाई मानना अस्वीकार कर दिया । इस पर महर्षि विश्वामित्र अत्यन्त कु्रद्ध हुए । उन्होने अपने बडे पचास पुत्रों को शाप देकर म्लेच्छ बना दिया ।
इसके बाद महर्षि विश्चामित्र ने अपने छोटे पुत्रों से प्रश्न किया - तुम लोग इसे अपना बडा भाई समझोगे या नहीं ? छोटे पचास पुत्र जिनमें प्रमुख महर्षि मधुछन्द थे, ऋषि के शाप से भयभीत हो गये थे । उन्होने तत्काल ऋषि का आदेश सहर्ष स्वीकार किया । ऋषि विश्वामित्र भी अपने पुत्रों की अनुशासनशीलता से प्रसन्न हो गये । उन्होने अपने उन पचास पुत्रों का धनवान पुत्रवान होने का आशीर्वाद दिया ।
ऋचीक के पौत्र और जमदग्नि के पुत्र परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि की आज्ञा से अपनी माता और भाइयों का सिर काट डाला था । जिसके प्रायश्चित स्वरूप उन्होने पैदल पृथ्वी पर्यटन किया था । समस्त पृथ्वी का पर्यटन करने के बाद वे अपने पितामह ऋचीक ऋषि के आश्रम में गये ।
कुशल प्र6न के बाद परशुराम ने अपनी इक्कीस बार की ज्ञत्रिय-विजय की कहानी अपने पितामह को कह सुनाई, जिसे सुनकर ऋषि ऋचीक अत्यन्त दु:खी हुए । उन्होने अपने पौत्र परशुराम को समझाया कि - तुमने यह काम ठीक नहीं किया, क्योकिं ब्राह्मण का कर्तव्य ज्ञमा करना होता हैं ज्ञमा से ही ब्राह्मण की शोभा होती है । इस कार्य से तुम्हारा ब्राह्मणत्व का हास हुआ है । इसकी शान्ति के लिये अब तुम्हें विष्णुयज्ञ करना चाहिये ।
अपने पितामह की आज्ञा मानकर परशुराम ने प्रसिद्ध लोहार्गल तीर्थ में विष्णुयज्ञ किया । परशुराम के उस यज्ञ में कश्यप ने आचार्य और वसिष्ठ ने अध्वर्यु का कार्य सम्पन्न किया । लोहार्गलस्थ माला पर्वत नामक पर्वत शिखर पर आश्रम बना कर रहने वाले मानसोत्पन्न मधुछन्दादि ऋषियों ने उस यज्ञ में ऋत्विक् का कार्य निष्पादन किया ।
यज्ञ-समाप्ति के बाद परशुराम ने सभी सभ्यों का यथायोग्य आदर सत्कार कर यज्ञ की दक्षिणा दी । यज्ञ के ऋत्विक् मानसोत्पन्न मधुछन्दादि ऋषियों ने यज्ञ की दक्षिणा लेना अस्वीकार कर दिया । इससे परशुराम का चित्त प्रसन्न न हुआ । उन्होने आचार्य कश्यप से कहा -
निमंत्रित मधुछन्दादि ऋषि यज्ञ की दक्षिणा नहीं लेना चाहते । उनके दक्षिणा न लेने से मैं अपने यज्ञ को असम्पूर्ण समझता हूं । अत: आप उन्हे समझाइये कि वे दक्षिणा लेकर मेरे यज्ञ को सम्पूर्ण करें ।
कश्यप ने मधुछन्दादि ऋषियों को बुलाकर कहा - आप लोगों को यज्ञ की दक्षिणा ले लेनी चाहिये, क्योकिं यज्ञ की दक्षिणा लेना आवश्यक है । दक्षिणा के बिना यज्ञ असम्पूर्ण समझा जाता है । आप लोगों को दान लेने में वैसे भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये । केवल एक ब्राह्मण वर्ण ही ऐसा है जो केवल दान लेता है । अन्य वर्ण दान देने वाले है, लेने वाले नहीं । इसके साथ साथ यह भी विशॆष बात है कि यह राजा ब्राह्मण कुल का पोषक है । इसलिये इसकी दी हुई दक्षिणा ग्रहण कर आप लोग इसको प्रसन्न करें । यदि आप यज्ञ दक्षिणा नहीं लेना चाहते तो आप भी अन्य प्रजाऒं के समान राजा को राज्य कर दिया करें ।
कश्यप की इस युक्तियुक्त बात को मधुछन्दादि ऋषियों ने मान लिया । कश्यप ने परशुराम को सुचित किया कि मधुछन्दादि ऋषि यज्ञ की दक्षिणा लेने को तैयार है । उस समय परशुराम के पास एक सोने की वेदी को छोडकर कुछ नहीं बचा था । वे अपना सर्वस्व दान में दे चुके थे । उन्होने उस वेदी के सात खण्ड टुकडे किये । फिर सातों खण्डों के सात सात खण्ड 1 x 7 = 7 x 7 = 49 कर प्रत्येक ऋषि को एक एक खण्ड दिया ।
इस प्रकार सुवर्ण-वेदी के उनचास खण्ड उनचास ऋषियों को मिल गयें, किन्तु मानसोत्पन्न मधुछन्दादि ऋषि संख्या में पचास थे । इसलिये एक ऋषि को देने के लिये कुछ न बचा तो सभी सभ्य चिन्तित हुए । उसी समय आकाशवाणी द्वारा उनको आदेश मिला कि तुम लोग चिन्ता मत करो । यह ऋषि इन उनचास का पूज्य होगा । इन उनचास कुलों में इसका श्रेष्ठ कुल होगा ।
इस प्रकार यज्ञ की दक्षिणा में यज्ञ की ही सोने की वेदी के खण्ड ग्रहण करने से मानसोत्पन्न मधुछन्दादि ऋषियों का नाम खण्डल अथवा खाण्डल पड गया । ये ही मधुछन्दादि ऋषि खाण्डलविप्र या खण्डेलवाल ब्राह्मण जाति के प्रवर्तक हुए । इन्ही की सन्तान भविष्यत् में खाण्डलविप्र या खण्डेलवाल ब्राह्मण जाति के नाम से प्रसिद्ध हुई ।

55 comments:

  1. कुलदेवीयो की जानकारी भी उपलब्ध कराये

    ReplyDelete
  2. बहुत ही ज्ञान बर्धक जानकारी हे। आपको साधुवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप का बहुत बहुत आभार ।

      Delete
  3. खण्‍डेलवाल ब्राम्‍हणों की वंशावली तैयार करने का प्रयास करें, यह एक सामुहिक एवं बहुत बडा कार्य होगा। मेरी सहायता की आवश्‍यकता हो तो बतायें।

    ReplyDelete
    Replies
    1. खांडल विप्र समाज के गोत्र के हिसाब से कुलदेवी मंदिर स्थान की जानकारी उपलब्ध करवा सकते है क्या जी

      Delete
    2. खांडल विप्र समाज के गोत्र के हिसाब से कुलदेवी मंदिर स्थान की जानकारी उपलब्ध करवा सकते है क्या जी

      Delete
    3. कृपया इस लिंक को खोले और अपने गोत्र की कुलदेवी को जाने

      https://khandalsamaj.blogspot.com/2020/05/blog-post_9.html

      Delete
  4. sundariya khandel ki kuldevi ka naam

    ReplyDelete
    Replies
    1. khandel sundariya samaj kuldevi ka naam or kuldevta ka naam

      Delete
    2. Kuldevi shakambhari mata h..

      Delete
    3. समराय माता जी

      Delete
    4. Jhunjhunodiya gotra ki kuldevi kon h

      Delete
  5. कुलदेवी की भी जानकारी चाहिए

    ReplyDelete
    Replies
    1. Bahut hi aavsayak jankari hai ye to

      Delete
    2. Bahut hi aavsayak jankari hai ye to

      Delete
    3. कृपया इस लिंक को खोले और अपने गोत्र की कुलदेवी को जाने

      https://khandalsamaj.blogspot.com/2020/05/blog-post_9.html

      Delete
    4. श्रीमान आपका कॉन्टेक्ट नंबर मिल सकता है
      मेरा नंबर 8839758594 है।कुल देवी जी के विषय में जानकारी चाहिए

      Delete
  6. कुल देवियो की जानकारी उपलब्ध करवाए

    ReplyDelete
    Replies
    1. Banshiwal gotra ki kuldevi ki jankari dene ki kripa kare....

      Delete
    2. कृपया इस लिंक को खोले और अपने गोत्र की कुलदेवी को जाने

      https://khandalsamaj.blogspot.com/2020/05/blog-post_9.html

      Delete
  7. Didvaniya gotra ki kul devi ki jankari bataee .

    ReplyDelete
    Replies
    1. Chamunda mata ka mandir kaha h sir

      Delete
    2. कृपया इस लिंक को खोले और अपने गोत्र की कुलदेवी को जाने

      https://khandalsamaj.blogspot.com/2020/05/blog-post_9.html

      Delete
  8. Sodwa gotra ki kuldevi ka naam bataye

    ReplyDelete
    Replies
    1. कृपया इस लिंक को खोले और अपने गोत्र की कुलदेवी को जाने

      https://khandalsamaj.blogspot.com/2020/05/blog-post_9.html

      Delete
  9. लोकेश शर्मा जी खंडेलवाल ब्राह्मणों के वेद और वेदशाखाओ के बारे में कोइ जानकारी हो तो बताइएगा ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. कृपया इस लिंक को खोले और अपने गोत्र की कुलदेवी को जाने

      https://khandalsamaj.blogspot.com/2020/05/blog-post_9.html

      Delete
  10. बीलवाल गोत्र की कुलदेवी का नाम बताएं..

    ReplyDelete
  11. Nehwal gotra ki kuldevi kon h kya aap mujhe batane ka kast karenge

    ReplyDelete
  12. Nehwal gotra ki kuldevi ka kya naam h kya aap mujhe batane ka kast karenge

    ReplyDelete
    Replies
    1. कृपया इस लिंक को खोले और अपने गोत्र की कुलदेवी को जाने

      https://khandalsamaj.blogspot.com/2020/05/blog-post_9.html

      Delete
  13. झुंझुनोदिया की कुलदेवी कौनसी है और स्थान बताये !!

    ReplyDelete
  14. Bhadhadra gotra ki kuldevi aur kuldevta?

    ReplyDelete
  15. piplwa ki koldevi naiki devi hai kya aur kol devta shyam baba

    ReplyDelete
    Replies
    1. रिणवा गोत्र की कुलदेवी बताये

      Delete
  16. मेरे समस्त भाईयों से अनुरोध है कि खंडेलवाल जाति ब्राह्मण में आती है या वैश्य में शपष्ट करें । क्योंकि वैश्य समाज के लोग इसे वैश्य जाति का ही मानते हैं।
    धन्यवाद !

    ReplyDelete
  17. पीपलवा गोत्र की कुलदेवी कोंन हैं ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. कृपया इस लिंक को खोले और अपने गोत्र की कुलदेवी को जाने

      https://khandalsamaj.blogspot.com/2020/05/blog-post_9.html

      Delete
  18. जोशी गौत्र की कुलदेवी कौन है ओर कहा है

    ReplyDelete
    Replies
    1. Chamunda mata khandela sikar rajsthan me h

      Delete
  19. Brahmin Gotra nice concep in gotra vali...keep growing with good work

    ReplyDelete
  20. माटोलिया गोत्र की कुलदेवी कौन है और कहा है???

    ReplyDelete
    Replies
    1. कृपया इस लिंक को खोले और अपने गोत्र की कुलदेवी को जाने

      https://khandalsamaj.blogspot.com/2020/05/blog-post_9.html

      Delete
  21. कृपया बणसिया गोत की कुलदेवी की जानकारी प्रदान करें

    ReplyDelete
    Replies
    1. कृपया इस लिंक को खोले और अपने गोत्र की कुलदेवी को जाने

      https://khandalsamaj.blogspot.com/2020/05/blog-post_9.html

      Delete
  22. Bahut achchha prayash

    Thank you

    ReplyDelete
  23. Naval gotra ki kuldevi ka nam

    ReplyDelete
  24. Kuldevi ki jankari chahie to contact kare 9660633810

    ReplyDelete
  25. Sir ji please SEWDA ki kul devi or kul devta bataayen ?

    ReplyDelete
  26. Sewda ki kul devi or kul devta????????

    ReplyDelete
  27. https://khandelwal-brahmin.blogspot.com/2022/08/khandal-brahmin-kuladevi.html

    ReplyDelete